पारद संसार की सबसे श्रेष्ठ धातु हे . जिसे प्राचीन काल से आयुर्वेद आचार्यो ने रस , प्राण या आत्मा शब्द से संबोधित किया हे . ये चंचल और अस्थिर प्रकर्ति का होते हुए भी अपने आप में विशिष्ट गुण समेटे हुए हे.
भाग्वाद्पाद शंकराचार्य के गुरु श्रीमाद्भाग्पाद गोविन्दपदाचार्य जेसे अध्यात्मिक योगिचार्य ने भी पारद को जीवन मुक्ति का एकमात्र साधन मानते हुए इसे आत्म शब्द से संबोधित किया हे उनके अनुसार -
१ पारद जीवन मुक्ति का एकमात्र साधन हे
२ पारद आजीवन निरोगी रहने की एकमात्र औषधि हे.
३ पारद स्वर्ण बनाने की प्रक्रिया में प्रधान धातु हे .
परन्तु इसके लिए पारद को बंधना और बुभुक्षित करना अतिआवश्यक हे. पारद के सोलह संस्कारो में से एक उसे बुभुक्षित बनाना भी हे .
पारद जीवन का सृष्टि का आधार हे जेसे शारीर में आत्मा वेसे रस में पारद हे जो इसे भली भांति समझ लेता हे वो संसार पर विजय प्राप्त कर लेता हे
रसोप्निषद के पंचदश अध्याय में कहा गया हे
यथा रासस्ताथाहातमा यथाहात्मा तथा रस
आत्म विद रसविचेच्व द्वाविभो सुक्ष्दार्शिनी
पारद समस्त रोगों को दूर करने में सहायक हे यंहा तक की अगर कोई मूर्छित या मृत हो गया हे तब भी इसके द्वारा उसे पुनर्जीवन प्रदान किया जा सकता हे इसके द्वारा " खेचरी विद्या " सिद्ध ली जा सकती हे जिससे एक व्यक्ति अदृश्य रह सकता हे या वायुवेग से एक स्थान से दुसरे स्थान पर जा सकता हे, यह शम्भू बीज हे .
अष्टदश संस्कार
पारद के कुल सोलह संस्कार संपन्न किये जाते हे जिनमे पहले आठ संस्कार रुग मुक्ति हेतु , औषधि निर्माण, रसायन और धातुवाद के लिए आवश्यक हे और शेष आठ संस्कार खेचरी सिद्धि , धातु परिवर्तन , सिद्ध सूत और स्वर्ण बनाने में प्रयुक्त होते हे
आचार्यो ने जो १८ संस्कार स्पष्ट किये हे वे इस प्रकार हे -
१ - स्वेदन
२ - मर्दन
३ - मूर्च्छन
४ - उत्थापन
५ - पातन
६ - रोधन
7 - नियमन
८ - दीपन
९ - ग्रासमान
१० - चारण
११ - गर्भदुती
१२ - जारण
१३ - बार्ह्यादुती
१४ - रंजन
१५ - सारण
१६ - क्रामन
कुछ आचार्यो ने दो और संस्कार माने हे जिन्हें वैध और भक्षण कहा गया हे
भारतवर्ष के अधिकतर आयुर्वेद आचार्यो और इस सम्बन्ध में जानकार व्यक्तियों को पुरे १८ संस्कार के नाम भी नहीं मालूम हे अधिक से अधिक आठ संस्कार करने में तो कुछ आचार्य सफल हुए हे परन्तु आगे के संस्कारो का ज्ञान उन्हें नहीं हे .
अब यहाँ में पहले आवश्यक आठ पारद संस्कार स्पष्ट कर रहा हूँ जो रोग मुक्ति औषध निर्माण से सम्बंधित हे.
१. स्वेदन
स्वेदन संस्कार से पारद का मलदोष दूर होता हे ये पारद का पहला संस्कार हे.
राइ, सेंधा नमक , काली मिर्च , पीपर, चित्रक , अदरक और मुली प्रत्येक को पारद का सोलहवा भाग ले और इन सबको मिलकर बीच में पारद को कपडे की पोटली में बंधकर रख दे और निचे मंद मंद अग्नि दे, तो स्वेदन संस्कार संपन्न होता हे .
२. मर्दन
मर्दन संस्कार में पारद को कपडे में ढीला बांध कर बार बार गर्म जल में डूबने और मसलने से पारद का रुका हुआ मल निकल जाता हे और यह बाहरी मल से मुक्त हो जाता हे.
३. मूर्च्छन
मूर्च्छन संस्कार में कुंवार, त्रिफला और चित्रक को बराबर बराबर लेकर मिला ले और उसमे पारद का खरल करे, तो एक घंटे तक खरल करने के बाद पारद मूर्छित हो जाता हे और वह सिद्ध पारद बन जाता हे.
४. उत्थापन
मूर्छित पारद को कांजी के साथ या निम्बू के रस में खरल करने से उत्थापित हो जाता हे , ऐसा पारद सर्वथा विषरहित और पवित्र बन जाता हे .
५. पातन
दो भाग पारद, एक भाग ताम्र और एक भाग नीला थोथा अथवा बछनाग मिला कर अधोपातन क्रिया करने से पारद का पतन संस्कार होता हे ऐसा संस्कार पूरा होने पर पारद विकारोत्पादाकता से सर्वथा मुक्त हो जाता हे.
६. रोधन
जब पातन संस्कार युक्त पारद बन जाये , तब उसे नपुंसकत्व दोष से मुक्त किया जाता हे , इस क्रिया को रोधन संस्कार कहते हे , इसके लिए गोमूत्र , अजामुत्र, नरमूत्र, मनुष्य का वीर्य, स्त्री के आर्तव तथा सेंधव को बराबर भाग में मिला कर उसमे पारद रख दिया जाता हे, फिर इन सबको कांच की शीशी में भरकर तीन दिन तक भूमि में दबा देने से वह समस्त प्रकार के नपुंसकत्व दोष से मुक्त हो जाता हे . इस क्रिया को रोधन क्रिया कहते हे .
रोधन का एक दूसरा प्रकार भी हे , इसके अनुसार पचास तोले सेंधा नमक में तीन सेर जल मिला कर उसमे पारद रख दे तथा किसी कांच के बर्तन में भरकर भूमि में दबाकर रख दिया जाता हे सात दिन तक भूमि में दबा रहने से यह रोधन युक्त हो जाता हे.
इस संस्कार के बाद पारद दिव्या चेतना युक्त बन जाता हे जोकि खेचरी साधना के लिए सहायक होता हे .
७. नियमन
ताम्बुल लहसुन , सेंधा नमक , भंगरा , काकोरी और इमली इन सबका बराबर भाग लेकर उसमे रोधन संस्कार किया हुआ पारद रख दिया जाता हे तथा तीन दिन तक दोलायंत्र द्वारा स्वेदित किया जाता हे, ऐसा करने पर पारद नियमन संस्कार युक्त हो जाता हे
( The Dola-Yantra is a purification device. Materials of construction include clay, iron, and stainless steel. In this process a drug is wrapped in banana leaf or a muslin cloth which is then suspended in the yantra by string and stick. Bolus should not contact any surface of the yantra. The liquid suited to the purpose is poured into the yantra until one-half of the muslin bolus (poultice) has been covered. The container is heated from below and as the liquid evaporates the liquid in the yantra is replaced-always keeping the poultice half covered (or the poultice may be lowered, too). Tradition permits covering of the yantra to capture the evaporate and to allow it to fall back into the fluid below. Either process is acceptable. Generally, there is a prescribed period for this cooking, upon completion of which the muslin sack is removed. The contents are water washed and sun dried. Note that the drug in the cloth has been potentiated by cooking in some prescribed herbal mixture. In some respects this resembles the process done in a Kharal )
नियमन संस्कार होने के बाद पारद की चंचलता समाप्त हो जाती हे और ऐसा पारद पूर्ण कायाकल्प करने में समर्थ होता हे
८. दीपन
फिटकरी , कांची , सुहागा , काली मिर्च , सेंधा नमक , राई और सहिजने के बीज बराबर लेकर उन्हें कूटकर एकसा बना ले और उसमे पारद को रख दे, फिर हलकी आंच से पकाए लगभग सात घंटे बाद पारद का दीपन संस्कार ख़तम होता हे ऐसा पारद ग्रास ग्रहण करने में समर्थ होता हे
उपर्युक्त आठो संस्कार करने पर पारद एक अद्वितीय धातु बन जाता हे. इसके बाद पारद को नोसादर और यवक्षार के साथ आठ घंटे खरल करने पर पारद निर्मल, निर्दोष और पूर्ण रूप से बुभुक्षित हो जाता हे ऐसे ही पारद को बडवाग्नि सदृश क्षुधातुर कहा जाता हे दुसरे शब्दों में यही पारद बुभुक्षित पारद कहलाता हे.
इस पारद को शिवलिंग का आकर देकर उसमे निम्बू का पानी डालने से यह स्थायी आकार ग्रहण कर लेता हे फिर यदि इस पर स्वर्ण रखा जाये तो यह उस स्वर्ण को निगल लेता हे.
इस प्रकार पारद पर स्वर्ण के साथ अन्य धातु मिली होती हे तो यह अन्य धातु को छोड़कर केवल स्वर्ण को ही निगलता हे, कांच , जवाहरात या अन्य धातु को ग्रहण नहीं करता हे, कोई भी स्वर्ण से बनी धातु इस पर रखने से दस से पंद्रह सेकंड के भीतर यह उस स्वर्ण को पचा लेता हे परन्तु इसके बावजूद भी इसका वजन नहीं बढ़ता, इस प्रकार जब यह स्वर्ण से तृप्त हो जाता हे तब यह पारद पत्थर कह्लाबे लगता हे और इसके बाद यदि इस बुभुक्षित पारद को किसी लोहे से स्पर्श कराया जाये तो ये उसे भी स्वर्ण में परिवर्तित कर देता हे
नागार्जुन ने बताया हे कि ऐसा बुभुक्षित पारद सहस्त्रो बिजली कि आभा कि तरह चमकता हे और यह इतना कठोर होता हे कि लोहे कि आरी से भी नहीं कटता, इस प्रकार का पारद विश्व में अन्यतम कहा जाता हे
From
रहस्यमय अज्ञात तंत्रों कि खोज में
written by my Gurudev
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भारतवर्ष के अधिकतर आयुर्वेद आचार्यो और इस सम्बन्ध में जानकार व्यक्तियों को पुरे १८ संस्कार के नाम भी नहीं मालूम हे अधिक से अधिक आठ संस्कार करने में तो कुछ आचार्य सफल हुए हे परन्तु आगे के संस्कारो का ज्ञान उन्हें नहीं हे .
अब यहाँ में पहले आवश्यक आठ पारद संस्कार स्पष्ट कर रहा हूँ जो रोग मुक्ति औषध निर्माण से सम्बंधित हे.
१. स्वेदन
स्वेदन संस्कार से पारद का मलदोष दूर होता हे ये पारद का पहला संस्कार हे.
राइ, सेंधा नमक , काली मिर्च , पीपर, चित्रक , अदरक और मुली प्रत्येक को पारद का सोलहवा भाग ले और इन सबको मिलकर बीच में पारद को कपडे की पोटली में बंधकर रख दे और निचे मंद मंद अग्नि दे, तो स्वेदन संस्कार संपन्न होता हे .
२. मर्दन
मर्दन संस्कार में पारद को कपडे में ढीला बांध कर बार बार गर्म जल में डूबने और मसलने से पारद का रुका हुआ मल निकल जाता हे और यह बाहरी मल से मुक्त हो जाता हे.
३. मूर्च्छन
मूर्च्छन संस्कार में कुंवार, त्रिफला और चित्रक को बराबर बराबर लेकर मिला ले और उसमे पारद का खरल करे, तो एक घंटे तक खरल करने के बाद पारद मूर्छित हो जाता हे और वह सिद्ध पारद बन जाता हे.
४. उत्थापन
मूर्छित पारद को कांजी के साथ या निम्बू के रस में खरल करने से उत्थापित हो जाता हे , ऐसा पारद सर्वथा विषरहित और पवित्र बन जाता हे .
५. पातन
दो भाग पारद, एक भाग ताम्र और एक भाग नीला थोथा अथवा बछनाग मिला कर अधोपातन क्रिया करने से पारद का पतन संस्कार होता हे ऐसा संस्कार पूरा होने पर पारद विकारोत्पादाकता से सर्वथा मुक्त हो जाता हे.
६. रोधन
जब पातन संस्कार युक्त पारद बन जाये , तब उसे नपुंसकत्व दोष से मुक्त किया जाता हे , इस क्रिया को रोधन संस्कार कहते हे , इसके लिए गोमूत्र , अजामुत्र, नरमूत्र, मनुष्य का वीर्य, स्त्री के आर्तव तथा सेंधव को बराबर भाग में मिला कर उसमे पारद रख दिया जाता हे, फिर इन सबको कांच की शीशी में भरकर तीन दिन तक भूमि में दबा देने से वह समस्त प्रकार के नपुंसकत्व दोष से मुक्त हो जाता हे . इस क्रिया को रोधन क्रिया कहते हे .
रोधन का एक दूसरा प्रकार भी हे , इसके अनुसार पचास तोले सेंधा नमक में तीन सेर जल मिला कर उसमे पारद रख दे तथा किसी कांच के बर्तन में भरकर भूमि में दबाकर रख दिया जाता हे सात दिन तक भूमि में दबा रहने से यह रोधन युक्त हो जाता हे.
इस संस्कार के बाद पारद दिव्या चेतना युक्त बन जाता हे जोकि खेचरी साधना के लिए सहायक होता हे .
७. नियमन
ताम्बुल लहसुन , सेंधा नमक , भंगरा , काकोरी और इमली इन सबका बराबर भाग लेकर उसमे रोधन संस्कार किया हुआ पारद रख दिया जाता हे तथा तीन दिन तक दोलायंत्र द्वारा स्वेदित किया जाता हे, ऐसा करने पर पारद नियमन संस्कार युक्त हो जाता हे
( The Dola-Yantra is a purification device. Materials of construction include clay, iron, and stainless steel. In this process a drug is wrapped in banana leaf or a muslin cloth which is then suspended in the yantra by string and stick. Bolus should not contact any surface of the yantra. The liquid suited to the purpose is poured into the yantra until one-half of the muslin bolus (poultice) has been covered. The container is heated from below and as the liquid evaporates the liquid in the yantra is replaced-always keeping the poultice half covered (or the poultice may be lowered, too). Tradition permits covering of the yantra to capture the evaporate and to allow it to fall back into the fluid below. Either process is acceptable. Generally, there is a prescribed period for this cooking, upon completion of which the muslin sack is removed. The contents are water washed and sun dried. Note that the drug in the cloth has been potentiated by cooking in some prescribed herbal mixture. In some respects this resembles the process done in a Kharal )
नियमन संस्कार होने के बाद पारद की चंचलता समाप्त हो जाती हे और ऐसा पारद पूर्ण कायाकल्प करने में समर्थ होता हे
८. दीपन
फिटकरी , कांची , सुहागा , काली मिर्च , सेंधा नमक , राई और सहिजने के बीज बराबर लेकर उन्हें कूटकर एकसा बना ले और उसमे पारद को रख दे, फिर हलकी आंच से पकाए लगभग सात घंटे बाद पारद का दीपन संस्कार ख़तम होता हे ऐसा पारद ग्रास ग्रहण करने में समर्थ होता हे
उपर्युक्त आठो संस्कार करने पर पारद एक अद्वितीय धातु बन जाता हे. इसके बाद पारद को नोसादर और यवक्षार के साथ आठ घंटे खरल करने पर पारद निर्मल, निर्दोष और पूर्ण रूप से बुभुक्षित हो जाता हे ऐसे ही पारद को बडवाग्नि सदृश क्षुधातुर कहा जाता हे दुसरे शब्दों में यही पारद बुभुक्षित पारद कहलाता हे.
इस पारद को शिवलिंग का आकर देकर उसमे निम्बू का पानी डालने से यह स्थायी आकार ग्रहण कर लेता हे फिर यदि इस पर स्वर्ण रखा जाये तो यह उस स्वर्ण को निगल लेता हे.
इस प्रकार पारद पर स्वर्ण के साथ अन्य धातु मिली होती हे तो यह अन्य धातु को छोड़कर केवल स्वर्ण को ही निगलता हे, कांच , जवाहरात या अन्य धातु को ग्रहण नहीं करता हे, कोई भी स्वर्ण से बनी धातु इस पर रखने से दस से पंद्रह सेकंड के भीतर यह उस स्वर्ण को पचा लेता हे परन्तु इसके बावजूद भी इसका वजन नहीं बढ़ता, इस प्रकार जब यह स्वर्ण से तृप्त हो जाता हे तब यह पारद पत्थर कह्लाबे लगता हे और इसके बाद यदि इस बुभुक्षित पारद को किसी लोहे से स्पर्श कराया जाये तो ये उसे भी स्वर्ण में परिवर्तित कर देता हे
नागार्जुन ने बताया हे कि ऐसा बुभुक्षित पारद सहस्त्रो बिजली कि आभा कि तरह चमकता हे और यह इतना कठोर होता हे कि लोहे कि आरी से भी नहीं कटता, इस प्रकार का पारद विश्व में अन्यतम कहा जाता हे
इति दिपितो विशुद्ध: प्रचलित विधुल्लतासहस्राभ:
भवति यदा रसराजश्चार्यो दत्तवा दिवितीयभिजम
From
रहस्यमय अज्ञात तंत्रों कि खोज में
written by my Gurudev
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Parada Dosha (Natural impurities of Parada)
Treatise on Rasashastra mention about the eight natural impurities or doshas of Parad. They are
- Naag (lead)
- Vang (Tin)
- Guru (unduly heaviness)
- Bhushail (Jalaj (water impurities), Bhumij (stone, mud, gravel), Girij(minerals etc))
- Chapal (instability, fickle nature)
- Mala (endogenius, exogenius waste like excretea)
- Agni(intolerance to heat)
- Vish / Garal (poison)
Parada consumed with any of these impurities causes ulcer, leprosy, burning sensation, eruptions, loss of reproductive power, dullness, loss of consciousness and death respectively. Hence Parada needs to be free from these natural impurities before its use as medicine or for other alchemical purposes.
Kanchuka Dosha of Parad
(Coverings of Parada)
Apart from the eight mentioned natural impurities of Parada, Rasashastra text mention about additional seven impurities/defects of Parada in form of encapsulation or external coverings or layers. These layers are known as Kanchukas and since they are totaled 7 in number they are refered to as Sapta(7)-Kanchuka (coverings) dosha (impurities) of Parada. In brief these coverings are baically mixture of other metals in powdered form with Parada which cause following 7 disorders in the human body if Parada is consumed without getiing rid of these impurities;- Bhedi (tearing)
- Dravi (liquefying)
- Malakad (causing impurities)
- Dhvanksi (causing darkness of skin)
- Patanakari (rupturing)
- Parpatika (producing scales on skin)
- Andhakari (causing blindness)
to be continued.........
29 comments:
dear sir i need your contact no plz contact me through santoshmc2@gmail.com
Dear Brother.
you can contact me on vishalthedesire@gmail.com
May Gurudev Bless yoy
WHAT IS ADHOPATAN KRIYA AND HOW IT CAN CONDUCT ?? PLEASE GUIDE IF POSSIBLE
Konsi book kharide jisme parad ka sampuran Gyan ho
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Om Nikhilam
Kya bajaar sat kharidey hua parad say yeh 8sanskaar kar saktey hai
Pls answer me khaneej para bhi use kar saktey hai kya
पारा और पारद और पारस .. ये सब मे फर्क है 8 संस्कार शायद पारे पर होते पारद पर नही
पारे से पारद , पारद से पारस बनता है जो सिर्फ कल्पना है.
ऐसी कोई सिध्द प्रयोग प्रमाणी पत्थर नही मिला
बस ग्रथो मे सिवाय आश्वासन के कुछ हासील ना हुआ सोना बनाने के अब तक के हर लेबँर्टरी कि रिपोर्ट अब तक कि नीगेटिव ही प्राप्त हुई चाहे भारतीयो के हो या अंग्रेजो के प्रयास हो
अंग्रेज प्रोफेसर भि ईन ग्रंन्थो को पढकर ये पागल पण कर चुके है
बडी बडी लेबँर्टरी मे अभी भी ये प्रयोग आज भी हो रहे बेकार ही ईन बातो मे वक्त बर्बाद ना करो
पारा एक विषधारी वस्तु है ईस से खिलवाड करणा वो भी,बिना ईसमे पुरी तरह सिध्द हुये गुरू के आचार्य के बहुत धोका है जब कि जानकारी उस से लेकर जिसने खुद ये प्रयोग सिध्दना किया हो ऐसे प्रयोग सिधा कँन्सर जैसी ही ला ईलाज मुसिबत या बिमारी को बुलावा है
Parad paras rahasy gorakhnath
8708837713
Fine he thank you
यह सब साधु सन्यासीयो के काम है
नही सर सब होता हैँ
RASRAJ AVINASHI HAI AVNASHI PER KOI BHI TANTRIK KRIYA MA'AM NAHI KARTI HAI
What is kanji?
द्रव्य के गुण, द्रव्यों में परस्पर संयोग के नियम, ऊष्मा आदि ऊर्जाओं का द्रव्य पर प्रभाव, यौगिकों का संश्लेषण, जटिल व मिश्रित पदार्थों से सरल व शुद्ध पदार्थ अलग करना आदि का अध्ययन भी रसायन विज्ञान के अन्तर्गत किया जाता है।
9665800708 pls.add my number in Your Ayurveda's Whatsapp Group
Namaskar sir kya maa is Vidya ko seek sakta hu
Please sir aap Mera number apna WhatsApp group ma add kranga mujha apna sisya bnayanga 9456973008
Sir aapne to sirf 8 Sanskar hi bataya hai please aur dusra bhi 8 batado
Please app mujhe contact kare
vimlendrasingh49@gmail.com is par
👍👍👍
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Rasayan shashtra book 📕
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