Friday 10 February 2012

गुरु प्रसंग - श्री राम दर्शन


उन दिनों हम चित्रकूट में थे और गंगा के किनारे शाम को कुछ समय तक बिताया करते थे 

   यहाँ पर एक वृद्धा मां गुरुदेव से मिलने आया करती थी, नित्य जब तक वह यहाँ  पर रहती यहाँ  की सफाई करती रहती , सेवा में उसका बहुत मन लगता था. उसके मुख से प्रतिक्षण "श्रीराम श्रीराम " निकलता रहता था.

         एक उसने कहा की "मेरे तो इष्ट श्रीराम हे और चित्रकूट में ही मेने पूरा जीवन बिता दिया हे पर कभी भी राम ने दर्शन नहीं दिए, जबकि में रोज शाम को उनके लिए गुड डालकर चूरमा बना कर रखती हूँ , रोज सुबह में उदास हो जाती हूँ की विश्वामित्र के साथ घुमने वाले मेरे छोटे छोटे राम लक्ष्मण तो आये ही नहीं "

गुरुदेव ने वृद्धा को अपने पास बैठाया और उसके दोनों भोंहो के बीच में रूप चिंतन करने की विधि सिखाई और साथ ही अपने एक हाथ के अंगूठे से उसके भ्रूमध्य को खोल दिया. एक ही क्षण उसे लगा जेसे की अन्दर प्रकाश ही प्रकाश भर गया हो. गुरुदेव ने उसे एक विशिष्ट राम मंत्र देते हुए कहा " आज रात्रि को तू इस मंत्र का जाप बराबर करती रहना और अपनी आँखे बंद रखना "

वृद्धा गुरुदेव के पास से चली गयी और इसके बाद लगभग आठ दस दिन बीत गए वह पुनः आई ही नहीं. हम सब उत्सुक थे की उसका और उसके श्रीराम का क्या हुआ ?

एक दिन गुरुदेव की आज्ञा लेकर हमने उस वृद्धा को ढूंढ़ निकाला और गुरुदेव के पास ले आये.

  गुरुदेव ने कहा " क्या बात हे उसके बाद तू आई नहीं ?

वृद्धा ने जवाब दिया  " मैं क्या आती , मुझे तो एक क्षण का समय भी नहीं मिला, उस रात्रि को जब आपने जाप करने लिए कहा था तो में बराबर मंत्र जाप कर रही थी तभी मेने देखा की थके हुए राम और लक्ष्मण आ रहे हे .उनके कंधो पर धनुष लटका हुआ हे , पैर थके हुए हे और चेहरा कुम्भ्लाया हुआ हे.

   " उस दिन मेने जल से दोनों के पैर धोये, पैरो में कुछ कांटे गढ़ गए थे उन्हें निकाला और खाना खिलाया, फिर मेने दोनों तरफ रुई की बने हुई गद्दिया बिछा दी और वो उस पर सो गए "

आज आपका ये शिष्य  बुलाने आया तो में सब काम छोड़कर आपके पास आई हूँ , देखो दोपहर ढल रही हे अभी रात को राम लक्ष्मण आते ही होंगे, पूरी तयारी भी नहीं हुई हे वे क्या सोचेंगे !

हम सब उस वृद्धा के ममत्व से अभिभूत हो रहे थे और उसके सोभाग्य पर इर्ष्या कर रहे थे. यह वृद्धा कितनी सोभाग्यशाली  हे की इसने  अपने जीवन में ही भगवान राम और लक्ष्मण के सर्षण कर लिए उनके पैर धुलाये उन्हें अपने हाथो से भोजन करवाया.

गुरुदेव ने उसे विदा कर दिया इसके बाद भी जब तक हम वह रहे वह दो तीन दिन  में आ ही जाती थी. कभी कहती लक्ष्मण  से झगडा हो गया  वह बहुत गुस्सा करता हे मैं तो आज उससे बात ही नहीं करुँगी वह अपने आप को समझता क्या हे कभी वह श्री राम से हुई बातचीत सुनती जब तक वह हमारे पास रहती सिर्फ उन्ही की चर्चा करती रहती थी

गुरुदेव ने इसकी व्यांखा करते हुए बताया की " साधना में एक विशिष्ट क्रम रूप दर्शन हे , जिसे भ्रूमध्य में स्थापित करना पड़ता हे , जिन्होंने योग साधना संपन्न की हे वे अपने इष्ट के रूप को भ्रूमध्य में स्थापित कर सकते हे या कोई योगी भी किसी के भ्रूमध्य में उसके इष्ट को स्थापित कर सकता हे, मेने भी ऐसा ही किया था और इसे इसके इष्ट के साक्षात्कार दर्शन हो सके. यह अध्यात्मिक साधना हे, इसमें गुरु साधक को ब्रह्य संसार की अपेक्षा अंतर में जाग्रत कर  भ्रूमध्य में दर्शन स्थापित कर देते हे 

वास्तव में यह साधना जीवन की एक महत्वपूर्ण साधना हे और भक्त और भगवान का पूर्णः तादाम्य बन सकता हे

जय सदगुरुदेव

सोजन्य से
हिमालय के योगियों की गुप्त सिद्धिया
Written By My  Gurudev 

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