Thursday, 11 December 2014

अशुभ स्वप्न फल नाशक प्रयोग ....

 
 
 
 
स्वप्न   तो हर व्यक्ति  को आते ही  हैं , और  हर व्यक्ति  स्वप्न देखना  चाहता  हैं .जो शुभ कारी हो...सुंदरता युक्त  हो …पर  यह  आज तो भली भांति जाना  पहचाना   तथ्य हैं की  मानव  मन   के  दो भाग   होते  हैं ..एक तो चेतन और  एक अवचेतन .....चेतन  जिसमे  जो लगातार दिन प्रतिदिन  हम  सीखते  जाते हैं वह  समाते  जाता  हैं ..पर यह सब  हमारी   विचार .... हमारे  संस्कार ..हमारी सोच  के अनुसार ..या पर निर्भर  करता  हैं पर  अब्चेतन मन मे  तो    कितने  जीवनों की  अनंत  सुचनाये   से  युक्त    हैं और यह स्वपन ........   यह सब तो अबचेतन  मन का ही   तो  कमाल हैं, जो  की वास्तव मे अनंत  सूचनाओ  का भण्डार  हैं , वह जैसे ही चेतन मन शांत हुआ यह  अपना खेल प्रारंभ कर देता  है  तो कभी   भूत काल सबंधित   तो ......कभी  भविष्य काल के ..पर  स्वप्न किस काल सबन्धित हैं   यह जानना   इतना  भी आसान  नही ... 
पर   कुछ स्वपन   की बाते   सामान्य दैनिक जीवन ........ तो कुछ की अलौकिक   जगत से सबंधित   होती  हैं . पर  यदि  सुबह  सुबह     कुछ ऐसा  दिख जाए     जो  हमारे  लिए  भय कारक  हो ..भले  ही   वह वास्तविकता   न हो .पर हमारा  मन   पूरे  दिन   भर परेशां रहता  हैं . की कही  कुछ  ऐसा न   हो जाए .
अगर   जितना मानव उपलब्धिया  प्राप्त  करते  जाता हैं  उतना ही  वह  भय  का भी अपने लिए  सृजन करते  जाता  हैं .और यह  बहुत सामान्य  सा  तथ्य   हैं  पर ..अपने  ही किसी प्रिय जन के बारे   मे कोई  अशुभता  स्वपन मे  दिख रही  हो तो वह मन   और भी परेशां  होने लगता  हैं .


इस यन्त्र  का निर्माण  किसी भी शुभ  दिन  कर सकते  हैं . सिर्फ अष्ट गंघ   का प्रयोग   इसके निर्माण के लिए  स्याही के  रूप मे  करना  हैं साथ ही साथ .. यंत्र लेखन के लिए  अनार की लकड़ी का  प्रयोग किया  जाना  चहिये ..

जब यह  यन्त्र का निर्माण हो  जाए   तब किसी भी  धातु के  ताबीज के अंदर   इसको  रख कर उस  ताबीज  को  अपने  गले   मे धारण  कर ले . निश्चय  ही   इन  बुरे   और भयानक  स्वप्न   से आपको    रा हत मिलेगी ही .........हाँ यह  तो आपको पता  हैं की    जब भी यंत्र का  निर्माण किया  जाये  उसकी धूप  दीप से पूजा ...........  मतलब   सबसे पहले  आप बिना कटा  फटा  भोज पत्र  ले ले ..और  सारी  आवश्यक क्रियाये  जैसे सदगुरुदेव  पूजन    और अन्य    चीजे  कर ले .  फिर  पूर्ण प्रसन्नता  से भोज पत्र   पर इस  यंत्र  का  अंकन   या लेखन कर ले .और   धूप से   पूजा  भी .और् सदगुरुदेव जी  से  अपने कार्य की सफलता  के लिए   प्रार्थना   तो सर्वोपरि   हैं .



Jai Gurudev

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