Sunday 30 November 2014

Trijata Aghori



Friday 28 November 2014

SWAPNESHWARI SADHNA

 
    मनुष्य के शरीर की आतंरिक रचना बहोत ही पेचीदा है और आधुनिक विज्ञान भी इसे अभी तक पूर्ण रूप से समजने के लिए प्रयासरत है. वस्तुतः हमारे पुरातन महापुरुषों ने साधनाओ के माध्यम से ब्रम्हांड की इस जटिल संरचना को समजा था और इसके ऊपर शोधकार्य लगातार किया था जिससे की मानव जीवन पूर्ण सुखो की प्राप्ति कर सके. कालक्रम में उनकी शोध की अवलेहना कर हमने उनके निष्कर्षों को आत्मसार करने की वजाय उसे भुला दिया और इसे कई सूत्र लुप्त हो गए जो की सही अर्थो में मनुष्य जीवन की निधि कही जा सकती है. मनुष्य के अंदर का ऐसा ही एक भाग है मन. मन ऐसा भाग है जो मनुष्य को अपने आतंरिक और बाह्य ब्रम्हांड को जोड़ सकता है. क्यों की ब्रम्हांड और मन दोनों ही अनंत है. आतंरिक ब्रम्हांड की पृष्ठभूमि मन ही है क्यों की शरीर के अंदर ही सही लेकिन मन अनंत है. और आतंरिक ब्रम्हांड भी बाह्य ब्रम्हांड की तरह अनंत भूमि पर स्थित होना चाहिए इस लिए इसका पूर्ण आधार मन है. मन के भी कई प्रकार के भेद हमारे ऋषियोने कहे है उसमे से प्रमुख है, जागृत, अर्धजागृत और सुषुप्त मन. यहाँ पर एक तथ्य ध्यान देने योग्य है की आतंरिक और बाह्य ब्रम्हांड की गति समान और नितांत है. इस लिए जो भी घटना बाह्य ब्रम्हांड में होती है वही घटना आतंरिक ब्रम्हांड में भी होती है. साधको की कोशिश यही रहती है की वह किसी युक्ति से इन दोनों ब्रम्हांड को जोड़ दे तो वह प्रकृति पर अपना आधिपत्य स्थापित कर सकता है. वह ब्रम्हांड में घटित कोई भी घटना को देख सकता है तथा उसमे हस्तक्षेप भी कर सकता है. लेकिन यह सफर बहोत ही लंबा है और साधक में धैर्य अनिवार्य होना चाहिए. लेकिन इसके अलावा इन्ही क्रमो से सबंधित कई लघु प्रयोग भी तंत्र में निहित है. 
 
स्वप्न एक एसी ही क्रिया है जो मन के माध्यम से सम्प्पन होती है. निंद्रा समय में अर्धजागृत मन क्रियावान हो कर व्यक्ति को अपनी चेतना के माध्यम से जो द्रश्य दिखता तथा अनुभव करता है वही स्वप्न है. चेतना ही वो पूल है जो आतंरिक और बाह्य ब्रम्हांड को जोडता है, मनुष्य की चेतना से सबंधित होने के कारण स्वप्न भी एक धागा है जो की इस कार्य में अपना योगदान करता है. यु इसी तथ्य को ध्यान में रख कर हमारे ऋषिमुनि तथा साधको ने इस दिशा में शोध कार्य कर ये निष्कर्ष निकला था की हर एक स्वप्न का अपना ही महत्त्व है तथा ये मात्र द्रश्य न हो कर मनुष्य के लिए संकेत होते है लेकिन इसका कई बार अर्थ स्पष्ट तो कई बार गुढ़ होता है. इसी के आधार पर स्वप्नविज्ञान, स्वप्न ज्योतिष, स्वप्न तंत्र आदि स्वतंत्र शाखाओ का निर्माण हुआ.
 
 स्वप्न तंत्र के अंतर्गत कई प्रकार की साधना है जिनमे स्वप्नों के माध्यम से कार्यसिद्ध किये जाते है. इस तंत्र में मुख्य देव स्वप्नेश्वर है तथा देवी स्वप्नेश्वरी. देवी स्वप्नेश्वरी से सबंधित कई इसे प्रयोग है जिससे व्यक्ति स्वप्न में अपने प्रश्नों का उत्तर प्राप्त कर सकता है. व्यक्ति के लिए यह एक नितांत आवश्यक प्रयोग है क्यों की जीवन में आने वाले कई प्रश्न ऐसे होते है जो की बहोत ही महत्वपूर्ण होते है लेकिन उसका जवाब नहीं मिलने पर जीवन कष्टमय हो जाता है. लेकिन तंत्र में ऐसे विधान है जिससे की स्वप्न के माध्यम से अपने किसी भी प्रकार के प्रश्नों का समाधान प्राप्त हो सकता है. ऐसा ही एक सरल और गोपनीय विधान है देवी स्वप्नेश्वरी के सबंध में. अन्य प्रयोगों की अपेक्षा यह प्रयोग सरल और तीव्र है.
इस साधना को साधक किसी भी सोमवार की रात्रिकाल में ११ बजे के बाद शुरू करे.
साधक के वस्त्र आसान वगेरा सफ़ेद रहे. दिशा उत्तर. साधक को अपने सामने सफ़ेदवस्त्रों को धारण किये हुए देवी स्वप्नेश्वरी का चित्र या यन्त्र स्थापित करना चाहिए. अगर ये उपलब्ध ना हो तो सफ़ेद वस्त्र माला को धारण किये हुए अंत्यंत ही सुन्दर और प्रकाश तथा दिव्य आभा से युक्त चतुर्भुजा शक्ति का ध्यान कर के अपने प्रश्न का उतर देने के लिए प्रार्थना करनी चाहिए. उसके बाद साधक अपने प्रश्न को साफ़ साफ़ अपने मन ही मन ३ बार दोहराए. उसके बाद मंत्र जाप प्रारंभ करे. इस साधना में ११ दिन रोज ११ माला मंत्र जाप करना चाहिए. यह मंत्रजाप सफ़ेदहकीक, स्फटिक या रुद्राक्ष की माला से किया जाना चाहिए.
 
 
 
ॐ स्वप्नेश्वरी स्वप्ने सर्व सत्यं कथय कथय ह्रीं श्रीं ॐ नमः 
 
 
 
मन्त्र जाप के बाद साधक फिर से प्रश्न का तिन बार मन ही मन उच्चारण कर जितना जल्द संभव हो सो जाए. निश्चित रूप से साधक को साधना के आखरी दिन या उससे पूर्व भी स्वप्न में अपना उत्तर मिल जाता है और समाधान प्राप्त होता है. जिस दिन उत्तर मिल जाए साधक चाहे तो साधना उसी दिन समाप्त कर सकता है. साधक को माला को सुरक्षित रख ले. भविष्य में इस प्रयोग को वापस करने के लिए इसी माला का प्रयोग किया जा सकता है.


Jai Gurudev

Wednesday 26 November 2014

आकस्मिक धन प्राप्ति साधना

 
           
              जीवनकाल मे व्यक्ति को अपनी इच्छाओ की पूर्ति तथा योग्य रूप से जीवन निर्वाह करने के लिए कितने ही कष्ट उठाने पड़ते है. कितने समय तक परिश्रम ग्रस्त भी रहना पड़ता है. और न जाने कितना ही शारीरिक तथा मानसिक रूप से गतिशील रहना पड़ता है. इन सब के मूल मे पूर्ण रूप से भौतिक सुख की प्राप्ति है. और इस पूर्ण सुख प्राप्ति के लिए धन प्राप्ति एक बहोत ही बड़ा अंग है. हर एक व्यक्ति की इच्छा होती है की वह भौतिक द्रष्टि से सम्प्पन हो, वह सुखो का उपभोग करे तथा अपने परिवार को भी कराये. अपनी इछाओ तथा मनोकामनाओ की पूर्ति करे तथा अपना और परिवार का ऐश्वर्य बनाये रखे. लेकिन क्या यह हर व्यक्ति के लिए संभव है? नहीं. क्यों की हमारा जीवन कर्मप्रधान है. हमारे कर्मफल के निमित हमारा भाग्य होता है तथा उसी के अनुरूप हमें भोग तथा सुखो की प्राप्त होती है. लेकिन यह प्रारब्ध यह भाग्य को साधनाओ के माध्यम से परावर्तित किया जा सकता है. किसी भी क्षेत्र मे परिश्रम के साथ ही साथ श्रद्धा तथा विश्वास के साथ साधना कर दीव्य शक्तियो की कृपा प्राप्त कर ली जाए तो सफलता निश्चित रूप से मिलती है. धन प्राप्ति के सबंध मे भी तंत्र शास्त्र मे अनेको साधना है, जिनके द्वारा व्यक्ति अपनी धन प्राप्ति की इच्छा को पूर्ण कर सकता है. लेकिन गुप्त रूप से एसी साधनाओ का प्रचलन भी रहा जिससे व्यक्ति को निश्चित ही अत्यधिक कम समय मे अर्थात शीघ्र ही धन की प्राप्ति हो जाती है. चाहे किसी न किसी रूप मे साधक को कोई भी माध्यम से धन की प्राप्ति होती है. इस प्रकार के प्रयोगों को आकस्मिक धनप्राप्ति प्रयोग कहे जाते है. प्रस्तुत प्रयोग आकस्मिकधनप्राप्ति के प्रयोगों की श्रृंखला मे एक अजूबा है. यह प्रयोग बहोत ही कम समय का है तथा साधक को निश्चित सफलता देने मे पूर्ण समर्थ है. इस प्रकार जिन व्यक्तियो के पास लंबे अनुष्ठान करने का समय नहीं है ऐसे व्यक्तियो के लिए भी यह प्रयोग श्रेष्ट है. प्रयोग की पूर्णता पर साधक को आय के नए स्तोत्र प्राप्त होते है, रुका हुआ धन प्राप्त होता है. या फिर किसी न किसी रूप मे धन की प्राप्ति होती है.
इस साधना को किसी भी शुक्रवार से शुरू किया जा सकता है.
समय रात्री काल मे १० बजे के बाद का हो
साधक के आसान तथा वस्त्र लाल रंग के हो तथा दिशा उत्तर रहे
साधक को यह साधना पलाश वृक्ष के निचे बैठकर करनी चाहिए. अगर किसी भी रूप मे साधक के लिए यह संभव नहीं हो तो साधक जहा पर साधना कर रहा हो वहा पर अपने सामने पलाश वृक्ष की लकड़ी को लाल वस्त्र पर रख दे. साधक अपने सामने देवी महालक्ष्मी का चित्र स्थापित करे. संभव हो तो महालक्ष्मी यन्त्र या श्री यन्त्र स्थापित करे. तथा उसका पूजन करे. उसके बाद साधक देवी महालक्ष्मी को प्रणाम कर साधना मे सफलता के लिए प्रार्थना करे. उसके बाद साधक निम्न लिखित मंत्र का कमलगट्टे की माला से २१ माला जाप करे. 
 
श्रीं शीघ्र सिद्धिं तीव्र फलं पूरय पूरय देहि देहि श्रीं श्रीं श्रीं नमः 
 
मंत्र जाप पूरा होने पर साधक को गाय के घी से १०१ आहुति इसी मंत्र के साथ अग्नि मे समर्पित करनी है. इसके बाद साधक नमस्कार कर सफलता प्राप्ति के लिए प्रार्थना करे.
यह क्रम व्यक्ति को ३ दिन तक रखना है. ३ दिन बाद साधक माला को तथा अगर पलाश की लकड़ी को उपयोग मे लाया है तो वह भी पानी मे प्रवाहित कर दे. साधक की शीघ्र धनप्राप्ति की इच्छा जल्द ही पूर्ण होती है. 



Jai Gurudev