जय सदगुरुदेव ,
वर्तमान समय मे इस मंत्र और इस क्रिया की अति आवश्यकता है, क्योंकि हमारी आने वाली पीढ़ी की दिशा ही बदल गयी..... जाने किस दिशा की ओर बढ़ रही है युवा पीढ़ी------- ?
प्रतिदन न्यूज़ मे, पेपर मे , दुर्घटनाएं पढ पढकर यही लगता है की समाज जितनी तरक्की साइंस मे कर रहा है, उतना ही संस्कारों मे पिछड़ता जा रहा है....... शायद इस बात को ही ध्यान मे रखकर गुरुदेव ने इन मंत्रो को ब्रम्हांड से एकत्रित कर शिष्यों को प्रदान किया जिससे कि आने वाली पीढ़ी को इस तरह ही शिक्षित किया जा सके........
भाइयों-बहनों मै चेतानामंत्र के प्रभाव् को प्रत्यक्ष देख चुकी हूं, अपने घर मे नहीं अपितु और भी मेरी कई बहनें है जो अपने बच्चों को देखा कर कृतज्ञ हैं गुरुदेव के प्रति.......
ये सब जानते हैं कि प्रत्येक स्त्री तब ही पूर्णता पाती है जब उसे माँ बनने का सौभाग्य प्राप्त होता है. मैएने शिविरों और गुरुदेव जी इन मंत्रो कि विशेसता सुनी थी,किन्तु मेरा दुर्भाग्य कि जब मुझे ये दीक्षा और मन्त्र कि आवश्यकता थी तब ही बाबा का सिधाश्रम प्रस्थान हो गया-------- मुझे बड़ी निराशा हो रही थी कि अब मेरे बच्चों कैसे मै ये चेतना प्रदान करूँ ? और सबसे बड़ी बात निखिलजी भी अपनी साधना हेतु बाहर गए हुए थे...... किन्तु तीसरे मंथ मे ही निखिलजी को आदेश हुआ कि घर वापिस जाओ और बच्चे को चेतना मंत्र प्रदान करो और तब निखिल जी ने एक विशिष्ट प्रक्रिया संपन्न की .
भाइयों-बहनों ये अति विशिष्ट क्रिया थी जिसे देखकर हैरान थी, और साथ ही मुझे चेतना सुनने, पढ़ने हेतु दिया...... मैने पूरे नौ महीने तक ना केवल इन मन्त्रों पड़ा बल्कि और भी अलग-अलग साधनाएं संपन्न की क्योंकि मैने कुछ सदगुरुदेव से सुना था की स्त्री के गर्भधारण के पश्चात माँ का बच्चे से सीधा सम्बन्ध होता है और जो कुछ भी माँ सुनती पढ़ती या देखती है व सीखता जाता है.......
ये मन्त्र बच्चे को चैतन्य करने के साथ ही गर्भ को भी पूर्ण सुरक्षित रखते हुए बच्चे को भी सुरक्षित रखता है और ये देखा.....
मेरा बेटा बॉबी पूरे ११वे माह के पहले सप्ताह मे हुआ, और पहले दिन से ही ये कुछ ज्यादा ही चैतन्य था, इसके क्रिया कलाप एक सामान्य बालक जैसे नहीं थे......सबसे बड़ी बात मेरे शरीर मे जहर बन गया था और डॉक्टर ने कह दिया था कि या तो बच्चा बचेगा या माँ .......किन्तु जब इसका जन्म हुआ तो ये पूर्ण स्वस्थ था......परन्तु मुझे बचाने के लिए गुरुदेव को आना पड़ा,जिसे मैंने बेहोश होते होते भी देख लिया था-----
भाइयो-बहनों मै अकेली नहीं हूं जिसे गुरुदेवजी की कृपा प्राप्त हुई. मेरे साथ की कई बहनें हैं जिन्हें अलग-अलग अनुभव प्राप्त हुए हैं. मै अपने सारे अनुभव आप सबके साथ इसलिए बाँट रही हूँ क्योंकि आप सब मंत्रो का साधनाओं का और उनसे सम्बंधित क्रियाएँ, प्रतिबन्धन, नियम को समझ सको----------------
भाइयों-बहनों इस कैसेट पर सदगुरुदेव ने इसलिए प्रतिबन्ध लगाया था क्योंकि अक्सर गुरुदेव हम शिष्यों कि उन्नति हेतु, लाभ हेतु प्रकृतिस्थ होकर मन्त्रों को प्राप्त करते थेऔर हमे प्रदान करते थे------------ चूँकि कि मन्त्र स्वयं गुरु और गुरुदेव स्वयं मन्त्र बन जाते थे इसलिए गुरुदेव ने ऐसी अनेक दीक्षा और मन्त्रों पर प्रतिबन्ध लगाया हुआ था......
भाइयों बहनों मेरे दोनों पुत्र अत्यंत मेधावी हैं और इसका प्रमाण मुझे देने कि आवश्यकता नहीं है.......: सदगुरुदेवजी ने इस मन्त्र कि अनेक विशेषताएं बताई हैं, जिनमें प्रमुख है ------
यह मंत्र उच्चकोटि का संतान प्रदाता है,अलौकिक और अद्वितीय है,
जिन स्त्रियों को गर्भ धारण करने मे समस्या हो वो भी इसका उच्चारण या श्रवण करें तो उचित लाभ प्राप्त हो जाता है ...
जिन कन्याओं के विवाह मे बाधा आ रही हो, यदि वे पूर्ण श्रद्धाभव से इसका उच्चारण करें तो, स्वतः ही बध्दएं समाप्त होकर विवाह संपन्न हो जाता है.......
ये मंत्र जहां स्त्रियों और बालिकाओं के लिए फलदाई है वहीँ ये मन्त्र पुरुषों और बालकों के लिए भी पूर्ण लाभदायक है..... क्योंकिं इनके माध्यम से वे शिक्षा मे श्रेष्ठता और पूर्णता प्राप्त कर सकते हैं, इन मंत्रो के प्रभाव स्वरुप उनके चेहरे पर दिव्यता और तेजश्विता दिखाई देने लगती है इस तरह ये मन्त्र पुरुषों के लिए, स्त्रियों के लिए, बालिकाओं के लिए, बालकों के लिए और वृद्धों के लिए भी बहुत ही उपयोगी है, क्योंकिं इसके माध्यम से ह्रदय के,जीवन के और शरीर के सभी तंतु चैतन्य हो जाते हैं.
ऐंसे बुजुर्ग यदि मोक्ष कि इच्छा रखते हों, या प्रभु दर्शन के आकांक्षी हों तो उनकी ये इच्छा ये मन्त्र पूर्ण करते ही हैं..... भाइयों एक बार "गुरुवर ने बताया था कि इन मन्त्रों विश्वमन्त्र कहा गया है इन्हें "विश्वेत्मामं", "विश्वदेवात्मामं", और ब्रह्मंडात्मामं कहा गया है.
भाइयों बहनों सदगुरुदेव ने कहा है ये मन्त्र अलौकिक हैं, अत्यंत गोपनीय है ,और उनके ही शब्दों मे "मैंने इन मंत्रो को अभी तक गोपनीय रखा है और सार्वजानिक रूप से प्रकट नहीं किया, क्योंकि अपात्र को दान देने से उस दान कि महिमा घट जाती है , यदि एक सामान्य व्यक्ति को उच्चकोटि का हीरा दे दिया जाये तो वह उसका मूल्य, उसकी महत्ता को समझ नहीं पाता ."
अब मै उन मंत्रो को स्पष्ट कर रहा हूं जो प्रकृति निर्मित है , जिनकों ना देवताओं ने बनाया है, ना यक्षों ने, ना गंधर्वों ने, ना किन्नरों ने, ना मनुष्यों ने,ना ऋषियों ने . ये स्वयंभू हैं ये जो अपने आप मे दिव्य और चेतनायुक्त हैं--------
भाइयों-बहनों गुरुदेव के इन शब्दों को समझ पायेगा ये मन्त्र उसको ही पूर्णता के साथ लाभ प्रदान करेंगे........
सदगुरुदेव ने एक जगह ये भी कहा है कि "मै इन मंत्रो का मूल ध्वनि मे उच्चारित कर रहा हूं क्योंकि मन्त्र के साथ ध्वनि अत्यंत आवश्यक और अनिवार्य तत्व है तथा इसका उच्चारण उसी ध्वनि मे किया जाये जिस ध्वनि के साथ प्रकृति ने निर्मित किया है."
किन्तु अब इसकी आवश्यकता बहुत ज्यादा है क्योंकि जरुरी है अब नए मार्गदर्शन की, नई चेतना की, जो कि सदगुरुदेव के द्वारा प्रदत्त ज्ञान ही है जिसके माध्यम से हम सब मिलकर इस कार्य को आगे बढ़ाएंगे ------ है ना
भाइयों बहनों जरा सोचिये यदि आज हम उस कैसेट को प्राप्त करना चाहें तो ---- किस गुरुधाम...... ?
और क्या गारंटी है कि वो वही कैसेट है मूल ध्वनि वाली ?
और इसी कारण गुरुदेव ने शिविर मे इसका प्रयोग करवाया था .
प्रातः स्नान कर स्वक्छ वस्त्र पहन कर आसन पर बैठ जाएँ और गणपतिजी की पूर्ण पूजा संपन्न करें.
जो कि आप सब को पता ही है
फिर गुरु पूजन करें और अनुमति एवं आशीर्वाद प्राप्त करें......
अब पूर्ण रूप गुरुदेव का ध्यान करते हुए----- क्योंकि मन्त्र, गुरु,श्रवणकर्त्ता या साधक या पाठक तीनो का एक दुसरे से पूर्ण सम्बन्ध स्थापित हो जाता है.
भाइयों-बहनों एक विशेस बात इस मन्त्र के पहले और बाद में "ध्यान धारणा और समाधि" बुक मे दिए हुए श्लोकों का नित्य पाठ करना है, क्योंकि तभी सदगुरुदेव निखिलेश्वरानन्द स्वरुप मे आकर आपको चेतना दीक्षा दे सकें और चेतना मन्त्रों के साथ समाविष्ट हो सकें....आपके शरीर मे प्राणों मे, और सातों चक्रों मे....
वे मन्त्र इस प्रकार है ......
प्रतिदन न्यूज़ मे, पेपर मे , दुर्घटनाएं पढ पढकर यही लगता है की समाज जितनी तरक्की साइंस मे कर रहा है, उतना ही संस्कारों मे पिछड़ता जा रहा है....... शायद इस बात को ही ध्यान मे रखकर गुरुदेव ने इन मंत्रो को ब्रम्हांड से एकत्रित कर शिष्यों को प्रदान किया जिससे कि आने वाली पीढ़ी को इस तरह ही शिक्षित किया जा सके........
भाइयों-बहनों मै चेतानामंत्र के प्रभाव् को प्रत्यक्ष देख चुकी हूं, अपने घर मे नहीं अपितु और भी मेरी कई बहनें है जो अपने बच्चों को देखा कर कृतज्ञ हैं गुरुदेव के प्रति.......
ये सब जानते हैं कि प्रत्येक स्त्री तब ही पूर्णता पाती है जब उसे माँ बनने का सौभाग्य प्राप्त होता है. मैएने शिविरों और गुरुदेव जी इन मंत्रो कि विशेसता सुनी थी,किन्तु मेरा दुर्भाग्य कि जब मुझे ये दीक्षा और मन्त्र कि आवश्यकता थी तब ही बाबा का सिधाश्रम प्रस्थान हो गया-------- मुझे बड़ी निराशा हो रही थी कि अब मेरे बच्चों कैसे मै ये चेतना प्रदान करूँ ? और सबसे बड़ी बात निखिलजी भी अपनी साधना हेतु बाहर गए हुए थे...... किन्तु तीसरे मंथ मे ही निखिलजी को आदेश हुआ कि घर वापिस जाओ और बच्चे को चेतना मंत्र प्रदान करो और तब निखिल जी ने एक विशिष्ट प्रक्रिया संपन्न की .
भाइयों-बहनों ये अति विशिष्ट क्रिया थी जिसे देखकर हैरान थी, और साथ ही मुझे चेतना सुनने, पढ़ने हेतु दिया...... मैने पूरे नौ महीने तक ना केवल इन मन्त्रों पड़ा बल्कि और भी अलग-अलग साधनाएं संपन्न की क्योंकि मैने कुछ सदगुरुदेव से सुना था की स्त्री के गर्भधारण के पश्चात माँ का बच्चे से सीधा सम्बन्ध होता है और जो कुछ भी माँ सुनती पढ़ती या देखती है व सीखता जाता है.......
ये मन्त्र बच्चे को चैतन्य करने के साथ ही गर्भ को भी पूर्ण सुरक्षित रखते हुए बच्चे को भी सुरक्षित रखता है और ये देखा.....
मेरा बेटा बॉबी पूरे ११वे माह के पहले सप्ताह मे हुआ, और पहले दिन से ही ये कुछ ज्यादा ही चैतन्य था, इसके क्रिया कलाप एक सामान्य बालक जैसे नहीं थे......सबसे बड़ी बात मेरे शरीर मे जहर बन गया था और डॉक्टर ने कह दिया था कि या तो बच्चा बचेगा या माँ .......किन्तु जब इसका जन्म हुआ तो ये पूर्ण स्वस्थ था......परन्तु मुझे बचाने के लिए गुरुदेव को आना पड़ा,जिसे मैंने बेहोश होते होते भी देख लिया था-----
भाइयो-बहनों मै अकेली नहीं हूं जिसे गुरुदेवजी की कृपा प्राप्त हुई. मेरे साथ की कई बहनें हैं जिन्हें अलग-अलग अनुभव प्राप्त हुए हैं. मै अपने सारे अनुभव आप सबके साथ इसलिए बाँट रही हूँ क्योंकि आप सब मंत्रो का साधनाओं का और उनसे सम्बंधित क्रियाएँ, प्रतिबन्धन, नियम को समझ सको----------------
भाइयों-बहनों इस कैसेट पर सदगुरुदेव ने इसलिए प्रतिबन्ध लगाया था क्योंकि अक्सर गुरुदेव हम शिष्यों कि उन्नति हेतु, लाभ हेतु प्रकृतिस्थ होकर मन्त्रों को प्राप्त करते थेऔर हमे प्रदान करते थे------------ चूँकि कि मन्त्र स्वयं गुरु और गुरुदेव स्वयं मन्त्र बन जाते थे इसलिए गुरुदेव ने ऐसी अनेक दीक्षा और मन्त्रों पर प्रतिबन्ध लगाया हुआ था......
भाइयों बहनों मेरे दोनों पुत्र अत्यंत मेधावी हैं और इसका प्रमाण मुझे देने कि आवश्यकता नहीं है.......: सदगुरुदेवजी ने इस मन्त्र कि अनेक विशेषताएं बताई हैं, जिनमें प्रमुख है ------
यह मंत्र उच्चकोटि का संतान प्रदाता है,अलौकिक और अद्वितीय है,
जिन स्त्रियों को गर्भ धारण करने मे समस्या हो वो भी इसका उच्चारण या श्रवण करें तो उचित लाभ प्राप्त हो जाता है ...
जिन कन्याओं के विवाह मे बाधा आ रही हो, यदि वे पूर्ण श्रद्धाभव से इसका उच्चारण करें तो, स्वतः ही बध्दएं समाप्त होकर विवाह संपन्न हो जाता है.......
ये मंत्र जहां स्त्रियों और बालिकाओं के लिए फलदाई है वहीँ ये मन्त्र पुरुषों और बालकों के लिए भी पूर्ण लाभदायक है..... क्योंकिं इनके माध्यम से वे शिक्षा मे श्रेष्ठता और पूर्णता प्राप्त कर सकते हैं, इन मंत्रो के प्रभाव स्वरुप उनके चेहरे पर दिव्यता और तेजश्विता दिखाई देने लगती है इस तरह ये मन्त्र पुरुषों के लिए, स्त्रियों के लिए, बालिकाओं के लिए, बालकों के लिए और वृद्धों के लिए भी बहुत ही उपयोगी है, क्योंकिं इसके माध्यम से ह्रदय के,जीवन के और शरीर के सभी तंतु चैतन्य हो जाते हैं.
ऐंसे बुजुर्ग यदि मोक्ष कि इच्छा रखते हों, या प्रभु दर्शन के आकांक्षी हों तो उनकी ये इच्छा ये मन्त्र पूर्ण करते ही हैं..... भाइयों एक बार "गुरुवर ने बताया था कि इन मन्त्रों विश्वमन्त्र कहा गया है इन्हें "विश्वेत्मामं", "विश्वदेवात्मामं", और ब्रह्मंडात्मामं कहा गया है.
भाइयों बहनों सदगुरुदेव ने कहा है ये मन्त्र अलौकिक हैं, अत्यंत गोपनीय है ,और उनके ही शब्दों मे "मैंने इन मंत्रो को अभी तक गोपनीय रखा है और सार्वजानिक रूप से प्रकट नहीं किया, क्योंकि अपात्र को दान देने से उस दान कि महिमा घट जाती है , यदि एक सामान्य व्यक्ति को उच्चकोटि का हीरा दे दिया जाये तो वह उसका मूल्य, उसकी महत्ता को समझ नहीं पाता ."
अब मै उन मंत्रो को स्पष्ट कर रहा हूं जो प्रकृति निर्मित है , जिनकों ना देवताओं ने बनाया है, ना यक्षों ने, ना गंधर्वों ने, ना किन्नरों ने, ना मनुष्यों ने,ना ऋषियों ने . ये स्वयंभू हैं ये जो अपने आप मे दिव्य और चेतनायुक्त हैं--------
भाइयों-बहनों गुरुदेव के इन शब्दों को समझ पायेगा ये मन्त्र उसको ही पूर्णता के साथ लाभ प्रदान करेंगे........
सदगुरुदेव ने एक जगह ये भी कहा है कि "मै इन मंत्रो का मूल ध्वनि मे उच्चारित कर रहा हूं क्योंकि मन्त्र के साथ ध्वनि अत्यंत आवश्यक और अनिवार्य तत्व है तथा इसका उच्चारण उसी ध्वनि मे किया जाये जिस ध्वनि के साथ प्रकृति ने निर्मित किया है."
किन्तु अब इसकी आवश्यकता बहुत ज्यादा है क्योंकि जरुरी है अब नए मार्गदर्शन की, नई चेतना की, जो कि सदगुरुदेव के द्वारा प्रदत्त ज्ञान ही है जिसके माध्यम से हम सब मिलकर इस कार्य को आगे बढ़ाएंगे ------ है ना
भाइयों बहनों जरा सोचिये यदि आज हम उस कैसेट को प्राप्त करना चाहें तो ---- किस गुरुधाम...... ?
और क्या गारंटी है कि वो वही कैसेट है मूल ध्वनि वाली ?
और इसी कारण गुरुदेव ने शिविर मे इसका प्रयोग करवाया था .
प्रातः स्नान कर स्वक्छ वस्त्र पहन कर आसन पर बैठ जाएँ और गणपतिजी की पूर्ण पूजा संपन्न करें.
जो कि आप सब को पता ही है
फिर गुरु पूजन करें और अनुमति एवं आशीर्वाद प्राप्त करें......
अब पूर्ण रूप गुरुदेव का ध्यान करते हुए----- क्योंकि मन्त्र, गुरु,श्रवणकर्त्ता या साधक या पाठक तीनो का एक दुसरे से पूर्ण सम्बन्ध स्थापित हो जाता है.
भाइयों-बहनों एक विशेस बात इस मन्त्र के पहले और बाद में "ध्यान धारणा और समाधि" बुक मे दिए हुए श्लोकों का नित्य पाठ करना है, क्योंकि तभी सदगुरुदेव निखिलेश्वरानन्द स्वरुप मे आकर आपको चेतना दीक्षा दे सकें और चेतना मन्त्रों के साथ समाविष्ट हो सकें....आपके शरीर मे प्राणों मे, और सातों चक्रों मे....
वे मन्त्र इस प्रकार है ......
पूर्णां परेवां मदवं गुरुर्वे चैतन्यं रूपं धारं धरेशं
गुरुर्वे सनतां दीर्घ मदैव् तुल्यम् गुरूवै प्रणम्यम् गुरूवै प्रणम्यम्
अचिन्त्य रूपं अविकल्प रूपं ब्रम्हा स्वरूपं विष्णु स्वरूपं
रुद्रात्वेमेव परतं परब्रह्म रूपं गुरूवै प्रणम्यं गुरूवै प्रणम्यं
हे आदिदेवं प्रभवं परेशां अविचिंत्य रूपं हृधयस्त रूपं
ब्रहमांड रूपं परमं प्रणितं प्रमेयं गुरूवै प्रणम्यं गुरूवै प्रणम्यं
हृदयं त्वमेवं प्राणं त्वमेवं देवं त्वमेवं ज्ञानं त्वमेवं
चैतन्य रूपं मपरं तहिदेव नित्यं गुरूवै प्रणम्यं गुरूवै प्रणम्यं अनादी अकल्पमयवां पूर्ण नित्यंअजन्मा अगोचर अदिर्वां अदेयम
अदेवांसरी पूर्ण मदैव् रूपं गुरुर्वे प्रणम्यं गुरुर्वे प्रणम्यं
गुरुर्वे सनतां दीर्घ मदैव् तुल्यम् गुरूवै प्रणम्यम् गुरूवै प्रणम्यम्
अचिन्त्य रूपं अविकल्प रूपं ब्रम्हा स्वरूपं विष्णु स्वरूपं
रुद्रात्वेमेव परतं परब्रह्म रूपं गुरूवै प्रणम्यं गुरूवै प्रणम्यं
हे आदिदेवं प्रभवं परेशां अविचिंत्य रूपं हृधयस्त रूपं
ब्रहमांड रूपं परमं प्रणितं प्रमेयं गुरूवै प्रणम्यं गुरूवै प्रणम्यं
हृदयं त्वमेवं प्राणं त्वमेवं देवं त्वमेवं ज्ञानं त्वमेवं
चैतन्य रूपं मपरं तहिदेव नित्यं गुरूवै प्रणम्यं गुरूवै प्रणम्यं अनादी अकल्पमयवां पूर्ण नित्यंअजन्मा अगोचर अदिर्वां अदेयम
अदेवांसरी पूर्ण मदैव् रूपं गुरुर्वे प्रणम्यं गुरुर्वे प्रणम्यं
इन पांच श्लोकों के साथ ही इन विशिष्ट पांच श्लोकों का भी जप करना चाहिए, जिन के माध्यम से पूज्य "गुरुवर श्री निखिलेश्वरानंदजी" पूर्णरूप से गुरु रूप में आपके समक्ष स्पष्ट होते हुए आपको चेतना दीक्षा भी प्रदान करें,जिससे ये चेतना मन्त्र आपके शरीर मे स्थापित हो सकें......
आदोवदानं परमं सदेहं प्राण प्रमेयम परसंप्रभूतम
पुरुशोत्मां पूर्ण मदैव रूपं निखिलेश्वरोयं प्रणमं नमामि
अहिर्गोत रूपं सिद्धाश्रमोयं पूर्नास्व रूपं चैतन्य रूपं
दिर्घो वतां पूर्ण मदैव नित्यं निखिलेश्वरोयं प्रणमं नमामि
ब्रह्माण्डमेवं ज्ञानोर्णवापं सिद्धाश्रमोयं सवितं सदेयं
अजन्मं प्रवां पूर्ण मदैव चिनत्यं निखिलेश्वरोयं प्रणमं नमामि
गुरुर्वै त्वमेवं प्राण त्वमेवं आत्म त्वमेवं श्रेष्ठ त्वमेवं
आविर्भ्य पूर्ण मदैव रूपं निखिलेश्वरोयं प्रणमं नमामि
प्रणम्यं प्रणम्यं प्रणम्यं परेशां प्रणम्यं प्रणम्यं प्रणम्यं विवेशां
प्रणम्यं प्रणम्यं प्रणम्यं सुरेशां निखिलेश्वरोयं प्रणमं नमामि
अब मै उस साधना को स्पष्ट कर रही हूं जो मैंने कि है...
पुरुशोत्मां पूर्ण मदैव रूपं निखिलेश्वरोयं प्रणमं नमामि
अहिर्गोत रूपं सिद्धाश्रमोयं पूर्नास्व रूपं चैतन्य रूपं
दिर्घो वतां पूर्ण मदैव नित्यं निखिलेश्वरोयं प्रणमं नमामि
ब्रह्माण्डमेवं ज्ञानोर्णवापं सिद्धाश्रमोयं सवितं सदेयं
अजन्मं प्रवां पूर्ण मदैव चिनत्यं निखिलेश्वरोयं प्रणमं नमामि
गुरुर्वै त्वमेवं प्राण त्वमेवं आत्म त्वमेवं श्रेष्ठ त्वमेवं
आविर्भ्य पूर्ण मदैव रूपं निखिलेश्वरोयं प्रणमं नमामि
प्रणम्यं प्रणम्यं प्रणम्यं परेशां प्रणम्यं प्रणम्यं प्रणम्यं विवेशां
प्रणम्यं प्रणम्यं प्रणम्यं सुरेशां निखिलेश्वरोयं प्रणमं नमामि
अब मै उस साधना को स्पष्ट कर रही हूं जो मैंने कि है...
प्रातः ४ से ५ बजे के बीच उठ कर स्नान कर स्व्क्छ वस्त्र धारण कर आसन पर बैठ जाएँ और गुरु गणपति पूजन कर सम्बंधित श्लोकों का ५ बार पाठ करें तथा उसके बाद निम्न मन्त्र कि ११ माला स्फटिक माला से जाप करें तथा दुबारा फिर से ५ पाठ करें.......
पूर्वां परं पूर्णताम पूर्वेसां चैतन्य रूपम स:
चैतन्यता पूर्वा आथारम्यानं श्रियं च सिद्धि: |
चैतन्यता पूर्वा आथारम्यानं श्रियं च सिद्धि: |
मन्त्र जप के बाद थोड़ी देर तक उसी आसन पर बैठ कर अपने मन मे भावना करें कि आपके अंदर चैतन्यता, दिव्यता समाहित हो रही है.....
भाइयों-बहनों दरअसल ये साधना गर्भवती स्त्रियों को तो पूरे नौ माह ही करना है किन्तु यदि पुरुष या बालक या कुमारी इस साधना को करते हैं तो ११ दिन कि साधना है...... और वाकई यदि इस साधना का पूर्ण लाभ लेना है तो इसे गंभीरता से ही करें और गंभीरता से ही लें .......
और अब तैयार हो जाएँ इस दिव्य और गोपनीय साधना की उर्जा तेजस्विता चेतना को ग्रहण करने के लिए.........
भाइयों-बहनों दरअसल ये साधना गर्भवती स्त्रियों को तो पूरे नौ माह ही करना है किन्तु यदि पुरुष या बालक या कुमारी इस साधना को करते हैं तो ११ दिन कि साधना है...... और वाकई यदि इस साधना का पूर्ण लाभ लेना है तो इसे गंभीरता से ही करें और गंभीरता से ही लें .......
और अब तैयार हो जाएँ इस दिव्य और गोपनीय साधना की उर्जा तेजस्विता चेतना को ग्रहण करने के लिए.........
सौजन्य से
रजनी भाभी