Sunday, 24 May 2015

स्वर्ण तंत्रम - स्वर्ण बनाने की दुर्लभ विधिया

स्वर्ण तंत्रम
Swarn Tantram
स्वर्ण बनाने की दुर्लभ विधिया

पारद विज्ञानं, पदार्थ विज्ञानं या स्वर्ण विज्ञानं दुनिया का सर्वश्रेष्ठ उपलब्धि हे. जिसे फ़ारसी में " कीमियागिरी " और अंग्रेजी में " गोल्डन गॉडेस " कहा गया हे. अर्थात भगवन के दर्शन करना या उन्हें प्राप्त करना जितना ही कठिन हे उतना ही स्वर्ण विज्ञानं को  सीखना या समझना कठिन है. इसलिए पुरे संसार के पारद विज्ञानी इस खोज में लगे है की वो पारद विज्ञानं को भली भाति समझ ले

मेने इस पुस्तक में इस कठिन और दुर्लभ ज्ञान को अत्यंत आसानी से समझने का प्रयास किया है. मेने ये अनुभव किया है की धीरे धीरे ये विद्या लुप्त होती जा रही है. इस पुस्तक को लिखने का विचार तब आया जब एक शिष्य मेरे पास आया उसका नया नया विवाह हुआ था परन्तु किसी वजह से शारीरिक रूप से बहुत ही कमजोर था. घर से तो वो आत्महत्या करने के लिए निकला था पर किसी तरह मेरे पास पहुंचा और अपनी व्यथा सुनाई और पूर्ण पुरुषत्व प्राप्त करने के लिए सहायता मांगी तो मेने बाजार से उसे शुद्ध पारद प्राप्त करने के लिए भेजा जो की " यौवन कर्तरी सिद्ध पारद " हो. जिसके सेवन से वह पूर्ण पुरुषत्व प्राप्त कर सके
परन्तु आश्चर्य की बात है की पुरे दिल्ली में कोई भी वेध या रसायनशाला नहीं मिली जिसमे इस तरह का संस्कारित पारद मिल सके. उस दिन मेरे मन को गहरी चोट लगी कि जो भारतवर्ष पारद विज्ञानं के क्षेत्र में सबसे आगे रहा है जिसके पास इस विज्ञानं को समझने के लिए हजारो ग्रन्थ और कई विश्वविधालय है वह इस प्रकार के पारद के संस्कार नहीं सिखाये जाते इससे बड़ा दुर्भाग्य और क्या होगा
मेने उसी समय निश्चय कर लिया कि अगर समय मिला तो इस विषय में पूर्ण प्रमाणिकता के साथ लिखने का प्रयत्न करूँगा. .

पारद विज्ञानं वास्तव में एक ऐसा विषय है जिसे सिर्फ गुरु के चरणो में बैठ कर ही सीखा जा सकता है. अभी तक इस विषय पर जितने भी ग्रन्थ लिखे गए है वो या तो सभी संस्कृत  में लिखे गए है या फिर इतने दुरूह और कठिन है कि उनको समझना अत्यंत मुश्किल है
मेरे जीवन का बहुत बड़ा भाग जंगलो बीता है और मेने इसकी कठोरता को आत्मसात किया है. इस प्रकार के प्राचीन ज्ञान को प्राप्त करने के लिए समझने के लिए मेने कई वर्ष हिमालय कि कंदराओं बिताये इसलिए में पूर्ण प्रमाणिकता से कह सकता हु कि भारत के यह प्राचीन ज्ञान अद्वितीय है इसके द्वारा शुद्ध और निर्दोष स्वर्ण का निर्माण किया जा सकता है और कई पीढ़ियों कि दरिद्रता दूर कि जा सकती है.
इसमें कोई दो राय नहीं है कि इस पुस्तक में जिस प्रकार के प्रयोग और परिक्षण दिए हुए है उसके माध्यम से आप घर बैठे इसमें पूर्णता प्राप्त कर सकते है पर अगर आप इस विषय को आत्मसात करना चाहते है तो ये सिर्फ गुरु चरणो में बैठ कर ही संभव है क्युकी यह विषय अनंत सागर कि तरह इहे जिसका कोई अंत नहीं है.

एक बार शंकराचार्य ने कहा था कि अगर मुझे दो या चार शिष्य ऐसे मिल जाये जो पूरी तरह समर्पित हो तो में पारद ज्ञान कि मदद से पुरे संसार कि दरिद्रता को समाप्त कर दूंगा, में भी उन्ही के शब्दों को दोहराता हुँ कि अगर सही मायनो में मुझे कुछ शिष्य मिल जाये जो कि हर परीक्षा कि कसोटी पर खरे उतरे तो में भारत कि नहीं पुरे विशव कि दरिद्रता समाप्त कर सकता हुँ क्युकी में इस ज्ञान को किताबो में नहीं बल्कि कुछ जीवित ग्रन्थ तैयार करना चाहता हूँ . 

भारत की प्राचीन रहस्य्मय विधयो में एक " कीमियागिरी " या " रसायन विद्या " प्रमुख विद्याओ में एक हे. इसका प्रचलन केवल भारत में ही नहीं बल्कि चीन अरब यूनान आदि देशो में था. देखा जाये तो आज परमाणु technology का जो विकास हुआ हे उसके मूल में यही रसायन विज्ञानं है
रसायन विज्ञानं में हलकी धातुओ से जैसे ताम्बा पारा सीसा, सोना या चांदी बनाने का ज्ञान ही नहीं बल्कि ऐसी औषधोया तैयार करना भी है जो की बुढ़ापे को योवन में और मृत्यु को अनत जीवन में बदलने का ज्ञान भी शामिल है. चिकित्सा विज्ञानं में प्राचीन काल से ही दो शब्दों पे बहुत जोर दिया गया है " देह सिद्धि "और लोह सिद्धि " यानि अमरत्व की प्राप्ति और जीवन में समृद्धि.

भारत के हर प्राचीन ग्रन्थ में इस विद्या का जिक्र है. अर्थववेद में इस विद्या के bare में विस्तार  से वर्णन गया है. उसमे बताया गया है की अगर पर को संखिया या नील थोथे से पुट देकर जारण किया जाये तो  निश्चय ही वह पारा लोहे को सोने में बदल देता है .
रसायन विद्या की उत्पत्ति भगवान शिव से मानी जाती है. जिन्हे वेदो में रूद्र का नाम दिया गया है. भगवान शिव ने इस विद्या के सम्बन्ध में कई महत्वपूर्ण निर्देश दिए है जिनका विवरण विस्तार से " रुद्रयामल तंत्र " में प्राप्त होता है. इसके अनुसार पारद शिव वीर्य है और अपने आप में एक सजीव वस्तु है. यदि पारद में अरण्ड के बीजो का पुट देकर स्वर्णग्रास दिया जाये तो ye पारा निश्चित ही सोने में बदल जाता है. कई आचार्यो ने इस कथन पर प्रयोग भी किये और सफल हुए .

उन दिनों " अश्वनी कुमार " देवताओ के चिकित्सक थे और इस विद्या के पूर्ण जानकार थे. उन्होंने एक महत्वपूर्ण ग्रन्थ लिखा जिसका नाम " धातु रत्न माला " है इसमें ताम्बे से स्वर्ण बनाने की विधिया बताई गयी है. 
अश्वनी कुमार ने पहली बार पारद के आठ संस्कारो की स्पष्ट विवेचना की. यदि ऐसे अष्ट संस्कारित पारे को किसी वृद्ध अशक्त या रोगी को दिया जाये तो यह पूर्ण काया कल्प करने की क्षमता रखता है. अश्वनी कुमार ने यह भी स्पष्ट किया है की यदि ताम्बे को पूर्ण रूप से पानी की तरह पिघला कर, इस अष्ट संस्कारित पारे का सम्पुट किया जाये तो उसी समय यह सोने में परिवर्तित हो जायेगा.
" धरणीधर संहिता " में पारद के बारे में प्रामाणिक रूप से बताते हुए कहा गया है -

य: श्लेषप्रनिलपित्तदोषशमनो रोगापहो मूर्छित: !
पंचत्व च गतो ददाति विपुलं राजयं चिरिंजीवितम् !!
वृद्धं खे गमन: करोत्यमरतां विद्याधरत्व नृणा !
सो य: पातु सूरासुरेन्द्रनमित: श्री सूतराज प्रभु !!
अर्थात पारे को यदि मूर्छित कर दिया जाये तो ऐसा पारा शरीर में वात पित्त एवं कफ को दूर करता है और यदि पारद का विशेष संस्कारो से मारण कर दिया जाये तो ऐसा पारद दीर्घायु देता हुआ अमरत्व प्रदान करता है और यदि पारद के आगे के संस्कार भी पुरे किये जाये तो यह आकाश गमन गुटिका देकर मनुष्य को आकाश में विचरण करने की सामर्थ्य प्रदान करता है. ऐसे मनुष्य को देवता भी प्रणाम करते है.

To be continue........